रवीन्द्रनाथ की कविता यात्रा हिन्दी में तो कम से कम पुर्नमूल्यांकन की दरकार रखती है । इतने वैविध्य विषयों पर एक साथ आम मनुष्य से जुड़ाव की चिंता के साथ कविता को जोड़े रखना उन्हें वैश्विक समकालीन चेतना से सम्पृक्त करता है। उन्होंने एक हजार कविताएं और दो हजार गीत लिखे । जब वे पन्द्रह बरस के थे तब उनकी पहली कविता पुस्तक छप चुकी थी और अंतिम कविता मृत्यु के ठीक पहले की लिखी हुई है । वैसे रवीन्द्रनाथ सूफी रहस्यवाद और वैष्णव काव्य से प्रभावित थे । फिर भी संवेदना चित्रण में वे इन कवियों को अनुकृति नहीं लगते । जैसे मनुष्य के प्रति प्रेम अनजाने ही परमात्मा के प्रति प्रेम में तब्दील हो जाता है । वे नहीं मानते कि भगवान किसी आदम बीज की तरह है । उनके लिए प्रेम है प्रारंभ और परमात्मा है अंत जब पहले पहल गीतांजलि का अनुवाद आया अंग्रेजी में तब प्रेम और शांति का संदेश के लिए इसका पश्चिम ने जबर्दस्त स्वागत किया । वह दौर ही ऐसा था ।